भारत के संसदीय ढांचे के दो स्तंभ
भारत का जीवंत लोकतंत्र द्विसदनीय संसद पर आधारित है, जिसमें दो सदन होते हैं: लोकसभा (लोगों का सदन) और राज्यसभा (राज्यों की परिषद)। ये दो सदन एक दूसरे के पूरक हैं और विधायी प्रक्रिया में अलग-अलग भूमिका निभाते हैं।
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Loksabha |
आइए, लोकसभा और राज्यसभा के बीच मुख्य अंतरों को समझते हैं:
1. गठन:
- लोकसभा:
- सीधे भारतीय नागरिकों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से बनी होती है।
- सदस्यों की संख्या 543 है, जिन्हें विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अनुपात में चुना जाता है।
- सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- राज्यसभा:
- राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधानसभाओं और विधान परिषदों के सदस्यों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों से बनी होती है।
- सदस्यों की संख्या 245 है, जिनमें से 233 निर्वाचित और 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं।
- सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है, जिसमें हर दो साल में एक तिहाई सदस्य चुने जाते हैं।
2. चुनाव:
- लोकसभा:
- चुनाव 'पहले आओ, पहले पाओ' (First-Past-the-Post) प्रणाली का उपयोग करके लड़े जाते हैं।
- मतदाता उम्मीदवारों को वोट देते हैं, और सबसे अधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार जीतता है।
- राज्यसभा:
- एकल संक्रमणीय मत (Single Transferable Vote - STV) पद्धति का उपयोग करके चुनाव लड़े जाते हैं।
- यह विधायकों को अपनी पसंद के अनुसार उम्मीदवारों को वोट देने की अनुमति देता है।
3. कार्यकाल:
- लोकसभा:
- निश्चित कार्यकाल होता है, जो 5 वर्ष का होता है।
- लोकसभा को भंग किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप नए चुनाव होते हैं।
- राज्यसभा:
- एक स्थायी सदन है, जिसका कोई निश्चित कार्यकाल नहीं होता है।
- सदस्यों का कार्यकाल छह साल का होता है, और सदस्यों का एक तिहाई हिस्सा हर दो साल में चुना जाता है, जिससे निरंतरता बनी रहती है।
4. शक्तियां:
- लोकसभा:
- धन विधेयक पारित करने की एकमात्र शक्ति रखती है।
- सरकार बनाने और उसे बनाए रखने के लिए विश्वास मत हासिल करना होता है।
- राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेती है।
- उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है।
- महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर सकती है।
- राज्यसभा:
- धन विधेयक पारित कर सकती है, लेकिन उसमें संशोधन या अस्वीकृति का अधिकार नहीं है।
- सरकार को गैर-वित्तीय विधेयकों पर सलाह दे सकती है।
- राष्ट्रपति को यह शक्ति है कि वह 12 सदस्यों को राज्यसभा में नामित कर सके, जिनमें प्रख्यात व्यक्ति भी शामिल हैं।
5. भूमिका:
- लोकसभा:
- भारत की जनता की आवाज़ को प्रतिबिंबित करती है।
- सरकार को जवाबदेह ठहराती है और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- राज्यसभा:
- राज्यों के हितों की रक्षा करती है।
- विधायिका में विचारों की विविधता लाती है।
- सरकार को दीर्घकालिक दृष्टिकोण प्रदान करने में मदद करती है।
लोकसभा और राज्यसभा मिलकर एक मजबूत और संतुलित संसद का निर्माण करते हैं, जो प्रभावी कानून निर्माण और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करती है। लोकसभा देश के तात्कालिक मुद्दों को संबोधित करती है, जबकि राज्यसभा दीर्घकालिक विचारों को ध्यान में रखती है। यह दोहरी व्यवस्था विधायी प्रक्रिया में स्थिरता और परिपक्वता लाती है।
लोकसभा और राज्यसभा के बीच सहयोग:
- दोनों सदनों को संविधान में संशोधन करने के लिए एक साथ काम करना पड़ता है।
- दोनों सदनों की संयुक्त बैठकें राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा करने और राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर चर्चा करने के लिए आयोजित की जाती हैं।
- दोनों सदनों की समितियां राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर संयुक्त रूप से जांच कर सकती हैं।
भारतीय लोकतंत्र के लिए लोकसभा और राज्यसभा का महत्व:
लोकसभा और राज्यसभा मिलकर संघीय ढांचे को मजबूत करती हैं. चूंकि राज्यों के प्रतिनिधि राज्यसभा में होते हैं, इसलिए यह केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित करता है। दो सदनों की व्यवस्था जल्दबाजी में लिए गए फैसलों को रोकती है. किसी भी विधेयक को कानून बनने के लिए दोनों सदनों से पारित होना आवश्यक है। इससे विचार-विमर्श की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलता है और अधिक व्यापक और संतुलित कानून बनते हैं। यह प्रणाली देश में विविधता और क्षेत्रीय आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है.
लोकसभा और राज्यसभा भारत के संसदीय ढांचे के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। वे मिलकर एक मजबूत, जवाबदेह और समावेशी लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।