सांची का स्तूप : बौद्ध धर्म की समृद्ध विरासत का एक प्रतीक

मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित सांची का स्तूप, भारत के गौरवशाली इतिहास और बौद्ध धर्म की समृद्ध विरासत का एक प्रतीक है। यह विश्व धरोहर स्थल न केवल अपने स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण के लिए जाना जाता है, बल्कि बौद्ध धर्म के दर्शन और जीवन शैली को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण है। आइये इस लेख में हम सांची स्तूप के इतिहास, ज्ञान और पर्यटन स्थल के रूप में इसके महत्व को एक्सप्लोर करें।


सांची स्तूप के निर्माण का इतिहास लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से माना जाता है। सम्राट अशोक, जिन्हें बौद्ध धर्म अपनाने के लिए जाना जाता है, के शासनकाल में इसका निर्माण शुरू हुआ। ऐसा माना जाता है कि अशोक की पत्नी, चिवी (महादेवी) का जन्म सांची में हुआ था और उन्होंने ही इस स्तूप के निर्माण का कार्य संभाला था।

शुरुआत में, सांची का स्तूप एक साधारण ईंट संरचना थी। बाद में, शुंग राजवंश के शासनकाल के दौरान (लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) इसका विस्तार किया गया और इसमें पत्थर की परत जोड़ी गई। इसके साथ ही प्रसिद्ध तोरण द्वार भी इसी दौरान बनाए गए। सातवाहन राजवंश (लगभग पहली शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी) के शासन में भी सांची का महत्व कम नहीं हुआ। इस काल में स्तूप के आसपास कई अन्य स्मारक बनाए गए, जिनमें अन्य छोटे स्तूप और मठ शामिल हैं।

हालांकि, गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद सांची का महत्व धीरे-धीरे कम होता गया। यह स्थल जंगल में खो गया और सदियों से उपेक्षित रहा। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश पुरातत्वविदों ने इसे दोबारा खोजा और तब से इसका संरक्षण और जीर्णोद्धार का कार्य लगातार जारी है।

सांची का स्तूप सिर्फ एक पत्थर का ढांचा नहीं है, बल्कि यह बौद्ध धर्म के दर्शन और जीवन शैली को दर्शाने वाला एक ज्ञान का भंडार है। स्तूप की दीवारों पर बनी हुई मूर्तिकला और उत्कीर्ण लेख उस समय के समाज, धर्म और कला के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।

 स्तूप की दीवारों पर बुद्ध के पिछले जन्मों की कहानियों, यानी जातक कथाओं को बारीकी से उकेरा गया है। ये कहानियां सत्य, अहिंसा, दया और करुणा जैसे बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों को सिखाती हैं।  स्तूप की दीवारों पर जीवन चक्र (संसार) का भी चित्रण किया गया है। यह जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को दर्शाता है, जो बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों में से एक है।

स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण: सांची का स्तूप स्थापत्य कला का एक अद्भुत उदाहरण है। अर्धगोलाकार स्तूप, ऊंचे तोरण द्वार और जालीदार परिक्रमा मार्ग, सभी उस समय की निर्माण कला की उत्कृष्टता को प्रदर्शित करते हैं।  सांची में चार अशोक स्तंभ भी पाए जाते हैं, जिनमें से एक राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है। इन स्तंभों पर बने हुए शेर की मूर्तियां शक्ति और गौरव का प्रतीक मानी जाती हैं।

 

  • प्रमुख आकर्षण (Major Attractions):
    • ग्रेट स्तूप (Great Stupa): यह सांची का सबसे प्रसिद्ध स्मारक है। इसका विशाल अर्धगोलाकार ढांचा और जटिल नक्काशी आगंतुकों को अपनी ओर खींच लेती है।
    • चार तोरण द्वार (Four Torana Gates): ये विशाल द्वार स्तूप के चारों ओर बने हुए हैं और इन पर बौद्ध धर्म से जुड़ी विभिन्न कहानियों और प्रतीकों को उकेरा गया है।
    • अशोक स्तम्भ (Ashoka Pillar): चार अशोक स्तंभों में से एक, जो राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया है, सांची में स्थित है।
    • गुफा मंदिर (Cave Temples): सांची में कुछ गुफा मंदिर भी हैं, जिनमें बौद्ध भिक्षु निवास करते थे और धार्मिक अनुष्ठान करते थे।
    • पुरातत्व संग्रहालय (Archaeological Museum): संग्रहालय में सांची से प्राप्त प्राचीन मूर्तियों, अवशेषों और अन्य वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है।
  • कैसे पहुंचे (How to Reach):
    • वायु मार्ग (By Air): सबसे निकटतम हवाई अड्डा भोपाल में स्थित है, जो सांची से लगभग 46 किमी दूर है। भोपाल हवाई अड्डे से सांची के लिए टैक्सी या बस आसानी से मिल जाती है।
    • रेल मार्ग (By Rail): सांची में ही एक रेलवे स्टेशन है। कई प्रमुख शहरों से सांची के लिए ट्रेनें चलती हैं।
    • सड़क मार्ग (By Road): सांची राष्ट्रीय राजमार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप सड़क मार्ग से भी सांची तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
  • आवास (Accommodation):
    • सांची में विभिन्न बजट के अनुसार होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संचालित होटल भी मौजूद हैं।
  • आपातकालीन संपर्क (Emergency Contact Numbers):
    • पुलिस स्टेशन: 100

यात्रा के लिए सुझाव (Travel Tips):

  • सांची घूमने के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।
  • आरामदायक कपड़े और अच्छे जूते पहनकर जाएं क्योंकि आपको काफी घूमना पड़ सकता है।
  • सूर्य की रोशनी से बचने के लिए टोपी, चश्मा और सनस्क्रीन लोशन ले जाएं।
  • प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करें और पर्यटन स्थल को स्वच्छ रखने में अपना योगदान दें।

सांची का स्तूप भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक अनमोल रत्न है। यह पर्यटन स्थल न केवल आपको अतीत की यात्रा कराएगा, बल्कि बौद्ध धर्म के शांति और करुणा के संदेश से भी अवगत कराएगा।

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